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आहार शृंखला में ऊर्जा स्थानांतरण

 आहार शृंखला में ऊर्जा स्थानांतरण 

हम यह क्यों कहते हैं कि जीव मण्डल में ऊर्जा का प्रवाह केवल एक ही दिशा में है ?

जीव मण्डल में ऊर्जा का प्रवाह एक ही दिशा में होता है। सूर्य से ऊर्जा का प्रवाह शुरू होता है। हरे पौधे प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया द्वारा इस सौर ऊर्जा का अंतर्ग्रहण करते हैं। सौर ऊर्जा पर्यावरण के माध्यम से जीवों में प्रवेश करती है। केवल वही पौधे और जंतु ऊर्जा का अंतर्ग्रहण करते हैं जिनमें क्लोरोफिल नामक हरित वर्णक होता है। इस ऊर्जा को अंतर्ग्रहण करने के पश्चात् पौधे इसे रासायनिक ऊर्जा में बदल देते हैं जो कार्बोहाइड्रेट के रूप में इकट्ठी हो जाती है।

इस ऊर्जा का कुछ भाग पौधे अपनी वृद्धि तथा ऊतकों के निर्माण में उपयोग करते हैं तथा जो ऊर्जा उपयोग नहीं होती वह ऊष्मा के रूप में मुक्त हो जाती है।

शाकाहारी जंतु इन पौधों को भोजन के रूप में खाते हैं। भोजन में भंडारित रासायनिक ऊर्जा भोजन के साथ ही पौधों से शाकाहारी जंतुओं में चली जाती है। जंतु इस प्राप्त ऊर्जा का कुछ अंश अपनी उपापचयी प्रक्रियाओं तथा वृद्धि पर खर्च करते हैं तथा कुछ अंश श्वसन में भी खर्च करते हैं।



इस ऊर्जा का कुछ अंश जो उपयोग नहीं हो पाता वह ऊष्मा के रूप में मुक्त कर दिया जाता है। शाकाहारी जीवों का भक्षण मांसाहारियों द्वारा होता है तथा ऊर्जा में प्रयोग का पहले चक्र चलता है। ऊर्जा की जो मात्रा उपयोग नहीं होती वह ऊष्मा के रूप में मुक्त होती है। ऊष्मा के रूप में मुक्त ऊर्जा पौधों द्वारा प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया में दोबारा उपयोग नहीं हो सकती है इसलिए ऊर्जा का प्रवाह एक ही दिशा में होता है।

आहार श्रृंखला छोटी कैसे हो जाती है ?

ऊर्जा का प्रवाह एक ही दिशा में होता है तथा उसका विभिन्न चरणों में स्थानांतरण होता रहता है। ऊर्जा के प्रत्येक स्थानांतरण पर ऊर्जा का 10% भाग रह जाता है। यदि आहार श्रृंखला में अधिक चरण हों तो ऊर्जा की अत्यधिक मात्रा व्यर्थ हो जाएगी। ऊर्जा को बचाने के लिए प्रकृति में आहार श्रृंखलाएं छोटी हो जाती हैं। आहार श्रृंखला में ऊर्जा स्थानांतरण के दौरान उत्पादक स्तर पर अधिक ऊर्जा उपलब्ध होती है। आहार श्रृंखला में दाहिने हाथ की ओर जाने पर ऊर्जा की उपलब्धता कम होती जाती है।

उदाहरण- घासàटिड्डाà मेंढकàसांपàमोर

यदि इस श्रृंखला में मेंढक को समाप्त कर दिया जाए तो श्रृंखला प्रभावित हो जाएगी। इस अवस्था में निम्नलिखित परिवर्तन दिखाई देंगे

(i) टिड्डों की संख्या बढ़ जाएगी।

(ii) मेंढक न मिलने के कारण सांपों की संख्या कम हो जाएगी।

(iii) सांपों की संख्या का मोरों की संख्या पर प्रभाव पड़ेगा।

मनुष्य के अवांछनीय अनेक कार्यों के कारण खाद्य श्रृंखला छोटी हो जाती है और उससे प्रकृति में असंतुलन पैदा हो जाता है।


क्या आहार श्रृंखला में छः से अधिक स्तर हो सकते हैं ? यदि नहीं तो क्यों ?

आहार श्रृंखला के प्रत्येक चरण में ऊर्जा का स्थानांतरण होता है। तथा ऊर्जा में लगातार कमी होती जाती है। तीन या चार चरणों के उपरांत ऊर्जा केवल नाम मात्र की ही रह जाती है। प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया द्वारा हरे पौधे सौर ऊर्जा का केवल 1% भाग ही अंतर्ग्रहण करते हैं तथा शेष वातावरण में ही व्यर्थ हो जाता है। दूसरे चरण में पौधों को शाकाहारी खाते हैं तो केवल 10% ही ऊर्जा शाकाहारियों को प्राप्त होती है।

यदि हम सौर ऊर्जा से प्राप्त ऊर्जा को केवल 1000 J मान लें तो पौधे केवल 10 J ऊर्जा प्राप्त कर सकते हैं तथा शाकाहारी केवल 1 J ऊर्जा प्राप्त करते हैं। इसी प्रकार जब शाकाहारी को मांसाहारी भक्षण करते हैं। तो उसे केवल 0.01 J ऊर्जा ही प्राप्त होगी। अतः ज्यों-ज्यों आहार श्रृंखला के चरण बढ़ते जाते हैं वैसे-वैसे ही उपलब्ध ऊर्जा की मात्रा भी कम होती जाती है। इसी आधार पर यह परिणाम निकलता है कि किसी भी आहार में छ: या अधिक चरण संभव नहीं होते हैं। उत्पादक स्तर पर ऊर्जा अधिक उपलब्ध होती है तथा बाद में लगातार कम होती जाती है। तथा अंतिम स्तर पर ऊर्जा अत्यधिक कम प्राप्त होती है।

पदार्थों के चक्रण में अपघटकों की भूमिका संक्षेप में बताइए ।

अथवा

किसी पारिस्थितिक तंत्र में अपघटकों की क्या भूमिका होती है ?

जीव - मण्डल के सभी जैव-जीवों को पोषण के आधार पर उत्पादक, उपभोक्ता तथा अपघटक के रूप में बांटा गया है। अपघटक सूक्ष्म जीव हैं जिनमें जीवाणु तथा फंगस या कवक प्रमुख हैं। ये मृत पौधों एवं जंतु शरीरों के अपघटन में सहायता करते हैं। ये परपोषी जीव हैं।

पौधों द्वारा मिट्टी से पानी के साथ खनिज प्राप्त किए जाते हैं तथा वायु से CO2 प्राप्त की जाती है जिसका उपयोग प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में होता है। मुख्य तत्त्व या पदार्थ जो इस प्रक्रिया में भाग लेते हैं वे C, N, O, S तथा P हैं। ये पदार्थ उत्पादक स्तर के पश्चात् दूसरे स्तरों में चले जाते हैं।

अपघटकों की सहायता से पौधों तथा जंतुओं के मृत शरीर को अपघटित किए जाने पर ये पदार्थ फिर पोषक भंडार से मुक्त कर दिए जाते हैं। पौधों द्वारा अवशोषित किए जाने पर ये तत्त्व फिर परिवहन में आ जाते हैं। 


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