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भ्रष्टाचार कारण और निवारण - Bhrastachar

सामान्य परिचय 

भूमिका:- आज का युग भौतिकवादी युग है। धन उसका प्रधान अंग है। जीवन के किसी क्षेत्र में चले जाइए, धन की महत्ता दिखाई देती है। सम्मान केवल धन की अधिक मात्रा पर ही निर्भर करता है। धर्म और कर्म को आज का व्यक्ति तिलांजलि देता जा रहा है क्योंकि वह अपने चारो ओर धर्म और कर्म की पराजय एवं धन की विजय होता देखता है और वह यह भी देखता है कि धन के द्वारा धर्म और कर्म सभी कुछ खरीदा जा सकता है। समाज की ऐसी स्थिति को देखकर धर्म और कर्म पर से उसका विश्वास उठता जाता है तथा वह धन को ही सब कुछ मान बैठता है। वह धन को इकट्ठा करने में ही अपने आपको पूर्णतः लगा देता है। धन किस साधन से इकट्ठा किया जा रहा है, यह विचार उस समय उसके सामने नहीं आता, बल्कि उसका उद्देश्य तो केवल- मात्र धन कमाना होता है। इसके लिए वह जमाखोरी, कर, चोरी, काला बाज़ारी, तस्करी आदि बुरे से बुरा काम करने से भी नहीं हिचकिचाता ।
 

सारे भारत में भ्रष्टाचार का बोलबाला है। जीवन का कोई भी क्षेत्र भ्रष्टाचार से अछूता नहीं। हमारे जीवन की कठिनाइयों और भारत की अनेक बड़ी-बड़ी समस्याओं का मूल भ्रष्टाचार है। स्वतंत्रता के बाद तो यह दोष उग्र रूप में प्रकट हुआ है। लोग अपनी प्राचीन संस्कृति को भूल गए हैं। त्याग की भावना खत्म हो गई है। राष्ट्र-प्रेम का अभाव है। लोग कहा करते थे कि गांधी जी चाहे न रहें, गाँधीवाद रहेगा ही । नाथूराम विनायक गोडसे ने तो गाँधी जी की हत्या की थी पर आज के नेताओं, अधिकारियों व पूंजीपतियों ने तो गाँधीवाद की हत्या की है। वे नैतिकता और मानवतावाद के मूल्यों को भूलकर धन के गुलाम बन गए हैं।

आज़ादी के बाद भारत ने केवल दो क्षेत्रों में प्रगति की है- जनसंख्या और भ्रष्टाचार में। जनसंख्या में वृद्धि के कारण बेकारी, मूल्यों में वृद्धि और गरीबी आदि समस्याएं उठी हैं। भ्रष्टाचार के कारण ये विकट रूप धारण कर गई हैं। पहले का संबंध मांग में वृद्धि से है तो दूसरे का संबंध पूर्ति के घटाने से है। भारत की समस्याओं का हल करने के लिए पंचवर्षीय योजनाओं को अपनाया गया। अरबों रुपए की धन-राशि खर्च की गई पर समस्याओं का हल नहीं हुआ। इसका बड़ा कारण भ्रष्टाचार है। धनिकों में, चाहे वे व्यापारी, दुकानदार अथवा मिल मालिक हों, इनका पालन-पोषण रिश्वतखोर और अयोग्य अधिकारियों द्वारा होता है। अब तो भ्रष्टाचार हमारे आर्थिक जीवन में इतना हावी हो चुका है कि समाज एवं शासन की बागडोर इसी ने संभाल ली है।

चीज़ों में मिलावट, नकली माल का उत्पादन, आवश्यक वस्तुओं की जमाखोरी, बनावटी अभाव दिखा कर मूल्य बढ़ाना और चोर बाज़ारी का ऐसा चक्र चल रहा है कि सारी अर्थ-व्यवस्था बेईमानी के सहारे खड़ी दिखाई देती है। सरकार इस कुचक्र को तोड़ने में असफल रही है, क्योंकि अनेक सरकारी कर्मचारी अनाचारी और रिश्वतखोर हैं। व्यापारी लोग अपने काले धन से कर्मचारियों के हृदय को भी काले धन जैसे बना देते हैं जिससे वे अपने कर्त्तव्य से गिर जाते हैं और देश-द्रोह करते हैं। इन लालची कर्मचारियों को धन देकर व्यापारी लोग निधड़क एवं निर्भय होकर सरकार के कानूनों को भंग करते हैं, टैक्सों की चोरी करते हैं, चोर- बाज़ारी करते हैं, गरीब जनता का शोषण करते हैं और राष्ट्र को दोनों हाथों से लूटते हैं।

प्रजातंत्र का ढांचा खोखला हो चुका है। क्या विधान सभा और संसद् का सदस्य, क्या मंत्रिगण और अन्य संस्थाओं व समितियों के अध्यक्ष सभी अपनी-अपनी कुर्सी सुरक्षित रखना चाहते हैं। वे चुनाव पर लाखों रुपए खर्च करते हैं और जीतने पर उनका प्रयत्न होता है कि उसे दुगुनी रकम प्राप्त की जाए। जिन गरीबों की हिमायत में नेतागण उच्च स्वर में नारे लगाते हैं, उन्हें गरीबों में बांटी जाने वाली धन-राशि और ज़मीन को निगलने में वे अजगर से कम नहीं। वे अपने कुनबे और गुट के लोगों को अनुचित सुगमताएं और ग़ैर-कानूनी सहायता देते हैं। बड़े-बड़े तस्करों, पूंजीपतियों और उद्योगपतियों ने राजनीतिक पार्टियों को चंदा देकर पहले ही भ्रष्ट कर दिया है। ये लोग बड़े धूर्त और चालाक होते हैं।

कई पार्टियां सांप्रदायिकता, प्रांतीयता, जातिगत भेदभाव और भाषा के नाम पर अपना उल्लू सीधा करती हैं और जनता को मूर्ख बनाती हैं। राष्ट्र हित और राष्ट्रीय एकता को धक्का पहुँचाती हैं। कई गद्दार लालच में आ कर अपने देश के रहस्य दूसरे देशों को देते हैं। कई स्वार्थी लोग देश की अमूल्य सांस्कृतिक निधियां विदेश में चोरी-छिपे भेजते हैं। तस्करों ने तो देश के आर्थिक ढांचे को ही बिगाड़ दिया है। तस्करी एक ऐसा हथियार है जिसके द्वारा साम्राज्यवादी शक्तियां भारत के आर्थिक ढांचे को नष्ट करना चाहती हैं। इस तरह भ्रष्टाचार के अनेक रूप हमारे समाज में मौजूद हैं और वे बढ़ रहे हैं। ऐसे समाज में युवक कैसे चरित्रवान् हो सकते हैं ? आज वे अनुशासनहीन हैं, परीक्षाओं में नकल करते हैं, अध्यापकों को पीटते हैं। इस तरह समाज और राष्ट्र का पतन हो रहा है। प्रत्येक स्तर पर बेईमानी है। जो भी जिस स्थान पर है वह अपने उत्तरदायित्व को नहीं निभाता ।

भ्रष्टाचार का अंत करने के लिए नैतिकता पर बल देना होगा। नैतिक क्रांति लानी होगी। चरित्र-निर्माण में बाधक तत्व - धन, लोभ और स्वार्थ को उखाड़ना होगा। राष्ट्र हित को सामने रखना होगा। शिक्षा पद्धति में धार्मिक और नैतिक शिक्षा पर बल देना होगा। यह नैतिक क्रांति जनता को पहले अपने जीवन में लानी होगी । यही नैतिकता उसे निर्भीक और साहसी बनाएगी। उसके आगे रिश्वतखोर और भ्रष्ट अधिकारियों को घुटने टेकने पड़ेंगे। भ्रष्टाचार का एक सूक्ष्म कारण है- हमारी सामाजिक अर्थ-व्यवस्था । हमारी आर्थिक नीतियां भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती हैं। पूंजीवादी अर्थ-व्यवस्था में भ्रष्टाचार का अंत नहीं हो सकता क्योंकि पूंजीवाद अर्थ-व्यवस्था धन की लिप्सा को अधिक बढ़ाती जाती है। पर जब तक अर्थव्यवस्था नहीं बदलती जनता को उठाना पड़ेगा, तभी भ्रष्टाचार समाप्त होगा ।

भ्रष्टाचार चाहे दुकानदार में हो, व्यापारी में, सरकारी कार्यालय में हो या कहीं बाहर, इन सब के पीछे मनमानी करने वाली नौकरशाही काम करती है और इस नौकरशाही में चरित्रहीनता की प्रवृत्ति इसका विशेष कारण है। वास्तव में भ्रष्टाचार का जन्म प्रशासन एवं न्याय पद्धति में विलंब के कारण होता है। किसान हो या मज़दूर, उद्योगपति हो या श्रमिक, दुकानदार हो या नौकर, सरकारी अधिकारियों के संपर्क में अवश्य आता है। कहीं से भ्रष्टाचार की कहानी शुरू होती है। अपने केस को उचित हो या अनुचित, जल्दी निकलवाने के लिए तथा अपने हक में निर्णय लेने के लिए रिश्वत का कार्य प्रारंभ हो जाता है।

उपसंहार:


निष्कर्ष:- भारत के भूतपूर्व केंद्रीय मंत्री श्री गुलज़ारी लाल नंदा के शब्दों में, भ्रष्टाचार एक बड़ा नासूर है। अतः इस पर हमें चारों ओर से हमला बोलना होगा। भ्रष्टाचार दूर करने के काम से हमें लाखों अच्छे लोगों का सहयोग प्राप्त करना होगा।' हमारा सौभाग्य है कि आज की भारत सरकार तस्करी एवं भ्रष्टाचार जैसी सामाजिक बुराइयों को दूर करने के लिए सजग है। जहां वह तस्करी जैसे बीमारी को दूर करने के लिए अपने समुद्र तटों को सुरक्षित करने हेतु 'तट रक्षा दल' जैसी नई प्रकार की सेना का निर्माण करने में जुट गई है, वहां एक भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए मंत्रियों, विधान सभा एवं लोक सभा के सदस्यों से ही इसका श्रीगणेश कर रही है। इसी प्रकार भ्रष्ट अधिकारियों को पकड़ने की ओर भी जनता का सक्रिय सहयोग ले रही हैं।

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