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पांचवी अनुसूची अधिनियम


प्रथागत कानून / अधिनियम क्या है ? (What is Customary Law / Acts?)

भारतीय कानूनी प्रणाली के तहत प्रथाओं को कानून के मुख्य स्त्रोत के रूप में मान्यता प्राप्त है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 13 (1) में यह प्रावधान है कि 'जब संविधान प्रभावी होगा तब उसके प्रभाव के साथ पिछले सभी असंगत कानून शून्य हो जाएंगे।संविधान कानून को परिभाषित करता है व इसमें प्रथाओं को भी शामिल करता है।

भारतीय न्यायालय उन्हीं प्रथाओं को कानूनी मान्यता देते हैं जो:

1) प्राचीन व पुरातन हों- इसका अर्थ यह है कि वे प्रथाएं जो काफी लंबे समय से उपयोग में चली आ रही हों और अब कानून के जैसे शक्तिशाली हो गई हों।

2) उचित और लगातार प्रयोग में हों- से आशय ऐसी प्रथाओं से है जो लगातार प्रयोग में लाई जा रही हो व उचित हो ।

3निश्चित हो- से आशय ऐसी प्रथा से है जो अपनी सीमा और संचालन के तरीके से निश्चित हो ।

 

संवैधानिक प्रावधान / अधिनियम:-

 भारतीय संविधान अनुच्छेद 244, 244 , 371ए व पांचवी और छठीं अनुसूची के द्वारा जनजातियदेशी समुदायों व उनकी प्रथाओं को सुरक्षा प्रदान करती है। संविधान की पांचवीं व छठवीं अनुसूची की व्यवस्था जनजातीय क्षेत्रों या अनुसूचित क्षेत्रों की रक्षा के लिए किया गया है।

    पांचवी अनुसूची में भारत के उत्तर पूर्व क्षेत्रों के अलावा राज्यों में निवास कर रहे अनुसूचित जाति व जनजाति के लोगों पर प्रशासन का प्रावधान करते हैं।

  छठवीं अनुसूची में भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों के क्षेत्रों के प्रशासन के लिए प्रावधान है व उन्हें उचित स्वायत्तता दी गई है। प्रत्येक क्षेत्रीय प्रशासन को अपनी क्षेत्रीय परिषद प्रदान किया गया है व प्रत्येक जिले की इकाई को उनकी स्थानीय जिला समिति दी गई है। स्वायत परिषदों को विधायी और कार्यकारी शक्तियां प्रदान की गई हैं जो कि राज्य के राज्यपाल द्वारा अनुमोदित होती है ताकि विभिन्न विषयों के संबंध में कानून बन सके। वे कानूनी प्रणालियों के साथ-साथ न्यायिक अधिकारों का भी प्रयोग करती हैं जिसमें सामंती कानून की भी कुछ विशिष्टताएं होती है।

पंचायतों के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम (PESA), 1996 के लागू होने के साथ ही आदिवासी समुदाय को ग्राम स्तर पर सीमित स्तर पर स्थानीय शासन प्राप्त हुआ और सारी राजनीतिकप्रशासनिक व वित्तीय शक्तियाँ स्थानीय ग्राम समितियों व पंचायतों को हस्तांतरित हो गई है।
इसके अलावाआदिवासी समुदायों के प्रथागत अधिकारों की रक्षा के लिए अन्य कानून भी हैं। अनुसूचित जनजातियों व अन्य पारंपरिक वनवासी (वन्य अधिकार संरक्षण) अधिनियम 2006 के सभी वन्य भूमि में रहने वाले वनवासीअनुसूचित जनजाति व पारंपरिक वनवासियों को मान्यता देने व उनके सामुदायिक अधिकारों को सुरक्षा देने का कार्य करता है।


पांचवी अनुसूची

(Fifth Schedule)

 

संविधान के अनुच्छेद 244(1) के अनुसार, 'अनुसूचित क्षेत्रवह क्षेत्र है जिसे राष्ट्रपति राज्यपाल की सलाह से 'अनुसूचित क्षेत्रघोषित कर सकते हैं। छठवीं अनुसूची (अनुच्छेद 244(2)) का संबंध उत्तर पूर्व राज्यों के उन क्षेत्रों से है जो आदिवासी क्षेत्र घोषित किए गए है व जिन्हें जिला व क्षेत्रीय स्तर पर स्वायतता प्रदान किया गया है। इन परिषदों को विधायीन्यायिक व कार्यकारी शक्तियाँ प्राप्त हैं।

 

पांचवी अनुसूची के अनुसार, ,किसी क्षेत्र को 'अनुसूचित क्षेत्रघोषित करने के मानदंड है:--

 1) आदिवासी जनसंख्या की प्रधानता (Preponderance of tribal population)

2) क्षेत्र का सघनता व उचित आकार (Compactness and reasonable size of the area)

3) एक प्रशासनिक संस्था जैसे- जिलाखंड या तालुका की (A viable administrative entity such as a district, block or taluk)

4) क्षेत्र का आर्थिक पिछड़ापन दूसरे पड़ोसी क्षेत्रों के मुकाबले में (Economic backwardness of the area as compared to neighbouring areas) I

 

किसी राज्य के अनुसूचित क्षेत्र को राज्य की सहमति से राष्ट्रपति द्वारा जारी एक अधिसूचित आदेश के द्वारा घोषित किया जाता है। यही विधि फेरबदल करने मेंक्षेत्र को बढ़ानेघटानेनए क्षेत्रों को शामिल करना व अनुसूचित क्षेत्रों से संबंधित किसी आदेश का लोप करने में भी अपनाई जाती है।

एक क्षेत्र के अनुसूचित क्षेत्र घोषित किए जाने के कारण व फायदे-

 1) किसी अनुसूचित क्षेत्र वाले राज्य के राज्यपाल को निम्नलिखित स्थितियों में विनियमन करने की शक्तियां प्राप्त हैं:

क) आदिवासियों से भूमियों का हस्तांतरण ।

ख) अनुसूचित जनजाति के लोगों को कर्ज देने वाले साहूकारों के व्यापार पर नियंत्रण करनाऐसा करने के लिए राज्यपाल संसद या विधानसभा के किसी भी अधिनियम को संशोधित और अपखंडन कर सकते हैं।

2) राज्यअधिसूचना के द्वारा यह निर्देश दे सकते हैं कि संसद या विधानसभा का कोई अधिनियम किसी राज्य के अनुसूचित क्षेत्र में लागू नहीं होगा या उसके उल्लेखित लिए कुछ अपवादों व सुधारों के साथ उस क्षेत्र में लागू होगा।

3) किसी अनुसूचित क्षेत्र वाले राज्य के राज्यपालवार्षिक तौर पर या जब राष्ट्रपति द्वारा अपेक्षित होराज्य के अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधी रिपोर्ट प्रेषित करेंगे। बहुल

4) आदिवासी सलाहकार परिषद प्रत्येक राज्य जिसके पास अनुसूचित क्षेत्र हैंमें स्थापित होना चाहिए। यह समिति आदिवासी राज्यों में भी स्थापित होने चाहिए परंतु राष्ट्रपति द्वारा जारी निर्देशों के अनुसार अनुसूचित क्षेत्रों में नहीं। इस समिति में 20 से ज्यादा सदस्य नहीं होने चाहिए जिसमें तीन चौथाई सदस्य अनुसूचित जनजाति के होने चाहिए। समिति की भूमिका अनुसूचित जनजाति की भलाई और बेहतरी के लिए कार्य करता है। जैसा कि राज्यपाल द्वारा इसे निर्देशित किया जाता है।

5) पंचायत के प्रावधान (अनुसूचित जनजातियों तक विस्तार) अधिनियम 1996 जो कि संविधान के भाग IX में शामिल हैके अनुसार पंचायतों के प्रावधान अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तृत किए गए है व इनमें अनुसूचित जनजातियों की बेहतरी के लिए विशेष प्रावधान है।

आदिवासी सलाहकार समिति

(Tribes Advisory Council)

पांचवीं अनुसूची के भाग 'के पैरा के प्रावधानों अनुसार उक्त समिति उस प्रत्येक राज्य में होगी जहां अनुसूचित क्षेत्र हो और यदि राष्ट्रपति आदेश करें तो ऐसे राज्यों में बना सकती है जहां अनुसूचित जनजाति के लोग तो है पर वह क्षेत्र अनुसूचित नहीं है। आदिवासी सलाहकार समिति जिसमें 20 से अधिक सदस्य नहीं हैजिसमें लगभग तीन चौथाई सदस्य राज्य की विधानसभा में अनुसूचित जनजातियों के प्रतिनिधि होने चाहिए। आदिवासी सलाहकार समिति का दायित्व होगा कि वह राज्य के आदिवासियों के हितों से जुड़े मामलों पर अपनी सलाह दे या जैसा कि उन्हें राज्यपाल द्वारा करने के लिए भेजा गया है।

आदिवासी सलाहकार समिति सभी अनुसूचित क्षेत्रों वाले राज्यों में गठित की गई है। हालांकि तमिलनाडूउत्तराखंड व पश्चिम बंगाल में अनुसूचित क्षेत्र नहीं है परंतु उन्होंने उक्त समिति गठित की हैं। मध्यप्रदेश राज्य में मध्यप्रदेश राज्य पुनर्गठन अधिनियम 2000 अनुसूचित क्षेत्र (छत्तीसगढ़झारखंड व मध्यप्रदेश) आदेश 2003 (सीओ 192) के द्वारा पुनर्गठित किया गया था। इसके फलस्वरूप मध्यप्रदेश के अनुसूचित क्षेत्रों का एक हिस्सा नवनिर्मित छत्तीसगढ़ को हस्तांरित हो गया।

 

छत्तीसगढ़ में अधिसूचित पांचवी अनुसूचित क्षेत्र

    छत्तीसगढ़ के अधिसूचित पांचवी अनुसूची क्षेत्र/ पंचायतों के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम वाले क्षेत्र निम्नानुसार है|

·         जिले - (पूर्णत: व आंशिक आच्छादन) - 19

·         जिले (पूर्णत: आच्छादित) - 13 (सरगुजाबस्तरकोरियादंतेवाड़ाकोरबाजशपुर कांकेरबलरामपुरसूरजपुरनारायणपुरबीजापुरसुकमा व कोंडागाँव ।

·         जिले (आंशिक आच्छादित) -6 (बालोदधमतरीरायगढ़राजनांदगांवगरियाबंद व बिलासपुर) विकास खण्ड - 85

·         पंचायत – 5050

·          ग्राम – 9977

 

 

छत्तीसगढ़ के अनुसूचित क्षेत्र

(Scheduled Area of Chhattisgarh)

भारत सरकार के असाधारण राजपत्र द्धारा दिनांक 20 फरवरी वर्ष 2003 छत्तीसगढ़ राज्य में पांचवी अनुसूची के अंतर्गत अनुसूचित क्षेत्र परिभाषित किए गए हैं-

1. सरगुजा जिला (वर्तमान में सरगुजाबलरामपुर व सूरजपुर जिला)

2. कोरिया जिला

3.बस्तर जिला (वर्तमान में बस्तरनारायणपुर व कोण्डागांव जिला)

4. दंतेवाड़ा जिला (वर्तमान में दंतेवाड़ाबीजापुर व सुकमा जिला)

5. कांकेर जिला

6. कोरबा जिला

7. जशपुर जिला

8. बिलासपुर जिले के मरवाहीगौरेला-1 एवं गौरेला-2 आदिवासी विकास खण्ड सामुदायिक विकासखंड का कोटा राजस्व निरीक्षक खंड।

9. दुर्ग जिले (वर्तमान में बालोद जिला) में डौण्डी आदिवासी विकासखंड ।

10. राजनांदगांव जिले में चौकीमानपुर और मोहला आदिवासी विकासखंड ।

11. रायपुर जिले (वर्तमान में गरियाबंद जिला) में गरियाबंदमैनपुर और छुरा आदिवासी विकास खंड ।

12. धमतरी जिले में नगरी (सिहावा) आदिवासी विकासखंड ।

13. रायगढ़ जिले में धरमजयगढ़घरघोड़ातमनारलैलूंगा और खरसिया आदिवासी विकासखंड ।



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