Type Here to Get Search Results !

पंचायती राज एवं विकास - इतिहास

भारतवर्ष प्रमुखतः ग्रामों का एक देश है। प्राचीन काल से ही भारतीय ग्रामीण समुदाय की सामाजिक संरचना के तीन महत्वपूर्ण आधार-जाति प्रथा, संयुक्त परिवार और ग्रामीण पंचायत रहे हैं। स्वशासन की इकाई के रूप में ग्रामीण पंचायतों का यहाँ विशेष महत्व रहा है। महात्मा गांधी की मान्यता थी कि भारतीय ग्रामीण जीवन का पुनर्निर्माण ग्राम-पंचायतों की पुनःस्थापना से ही सम्भव है।



ग्राम पंचायत ग्रामीण क्षेत्रों में शासन प्रबन्ध, शान्ति और सुरक्षा की एकमात्र संस्था रही है। डॉ. राधाकुमुद मुकर्जी ने ग्राम पंचायतों को "प्रजातन्त्र के देवता ' की संज्ञा दी है। आपने इनके सम्बन्ध में लिखा है, "ये समस्त जनता की सामान्य सभा के रूप में अपने सदस्यों के समान अधिकारों, स्वतन्त्रताओं के लिए निर्मित होती हैं ताकि सब में समानता, स्वतन्त्रता तथा बन्धुत्व का विचार दृढ़ रहे ।

डॉ. के. पी. जायसवाल' ने भी लिखा है, “पुरातन काल के प्रलेखों से ज्ञात होता है कि लोकप्रिय सभाओं एवं संस्थाओं द्वारा राष्ट्रीय जीवन तथा प्रवृत्तियाँ व्यक्त की जाती थीं। भारत में पंचायतों की प्राचीनता के प्रमाण ऋग्वेद तथा अथर्ववेद में मिलते हैं। भारत में पंचायत व्यवस्था को प्रारम्भ करने का श्रेय राजा प्रिथु को है। वैदिक काल से ही यहाँ ग्राम को प्रशासन की मौलिक इकाई माना जाता रहा है।

भारतीय ग्रामीण पंचायतों को देखकर अंग्रेजों की यह धारणा बनी कि यहाँ तो प्रत्येक ग्राम एक स्वतन्त्र गणराज्य के रूप में है और भारतीय ग्रामीण पंचायतों में गणतन्त्र के सभी गुण पाये जाते हैं। यद्यपि अंग्रेजों के द्वारा ग्रामीण पंचायतों की महत्ता को तो माना गया, परन्तु उनकी नीतियों के कारण धीरे-धीरे यहाँ सभी प्रकार के प्रशासनिक तथा न्याय सम्बन्धी अधिकारों के अंग्रेज अधिकारियों के हाथों में केन्द्रित हो जाने से ग्राम पंचायतों की शक्तियों एवं प्रभाव में कमी आयी।

स्वतन्त्र भारत में पंचायतों का संगठन(ORGANIZATION OF PANCHAYATS IN INDEPENDENT INDIA)


अंग्रेजी शासन काल में सत्ता का केन्द्रीकरण हो गया और दिल्ली से सरकार पूरे भारत पर शासन करने लगी। परिणाम यह हुआ कि यहाँ प्रशासन का परम्परागत रूप करीब-करीब समाप्तप्राय हो गया और पंचायतों का महत्व काफी घट गया। स्वतन्त्रता-प्राप्ति के पश्चात् नेताओं का ध्यान ग्रामीण पुनर्निर्माण और पंचायतों की पुनः स्थापना की ओर गया। महात्मा गांधी का कहना था कि स्वतन्त्रता का प्रारम्भ धरातल से होना चाहिए। प्रत्येक ग्राम एक छोटा गणराज्य हो जो पूर्णतया आत्म-निर्भर हो, उसे किसी भी आवश्यकता को पूरा करने के लिए दूसरों पर निर्भर न रहना पड़े। इसी विचार को क्रियान्वित करते हेतु संविधान की धारा 40 में यह व्यवस्था की गई कि "राज्य ग्राम पंचायतों का संगठन करेगा और उनको समस्त अधिकर प्रदान करेगा जिससे वे स्वायत्त शासन की इकाइयों के रूप में कार्य करने के योग्य हो जायें ।” यद्यपि देश के स्वतन्त्र होने के पश्चात् यहाँ शासन की लोकतान्त्रिक प्रणाली को अपनाया गया और जनता को स्वयं अपने प्रतिनिधियों को चुनने का अवसर मिला। शासन का विकेन्द्रीकरण करने हेतु विभिन्न राज्यों में ग्राम पंचायतें स्थापित की गयीं।

सन् 1952 में ग्रामों के सर्वांगीण विकास हेतु सामुदायिक विकास कार्यक्रम और 1953 में राष्ट्रीय विस्तार सेवा योजना प्रारम्भ की गयी। ग्रामों के पुनर्निर्माण की दृष्टि से यह एक समन्वित योजना थी ।

समय बीतने के साथ-साथ यह महसूस किया गया कि इच्छित मात्रा में इस कार्यक्रम हेतु जनसहयोग प्राप्त नहीं रहा है।

इस कार्यक्रम को जनता का कार्यक्रम बनाने और आवश्यक जनसहयोग प्राप्त करने हेतु बलवन्तराय मेहता कमेटी की स्थापना की गई जिसने सन् 1957 में प्रस्तुत अपने प्रतिवेदन में सुझाव दिया कि सामुदायिक विकास कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए आवश्यक है कि इसमें स्थानीय जनता की रुचि और सहभागिता में वृद्धि की जाय। इस कमेटी की सर्वाधिक महत्वपूर्ण देन यह थी कि इसने पंचायती राज की योजना प्रस्तुत की जिसे साधारणतया विकेन्द्रीकरण कहा जाता है।

पंचायती राज(PANCHAYATI RAJ)

पंचायती राज की अवधारणा का विकास सामुदायिक विकास कार्यक्रमों को गति प्रदान करने और इच्छित जनसहयोग प्राप्त करने के उद्देश्य से हुआ। अपने मौजूदा स्वरूप में पंचायती राज सन् 1959 में अस्तित्व में आया जब बलवन्तराय मेहता अध्ययन दल ने 1957 में अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत किया।

मेहता कमेटी ने सामुदायिक विकास कार्यक्रम के संचालन में प्राण फूँकने की दृष्टि से पंचायती राज के अन्तर्गत एक तीन-स्तरीय व्यवस्था (Three-Tier System) की स्थापना का सुझाव दिया। इस कमेटी के सुझावों को स्वीकार कर लिया गया और प्रशासन के विभिन्न स्तरों पर पंचायती राज की स्थापना की गयी। पंचायती राज योजना को प्रारम्भ करने वाले प्रथम राज्यों में राजस्थान तथा आन्ध्र प्रदेश थे, तत्पश्चात् इसे पंजाब, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश तथा अन्य राज्यों में भी अपनाया गया। इस समय देश में 2.20 लाख ग्राम पंचायतें, 5.3 हजार पंचायत समितियाँ तथा 351 जिला परिषदें हैं ।

जब हम लोकतान्त्रिक विकेन्द्रीकरण की अवधारणा पर विचार करते हैं तो पाते हैं कि बलवन्तराय मेहता ने अपने प्रतिवेदन में सर्वप्रथम इसका उल्लेख किया है। आपने लोकतान्त्रिक विकेन्द्रीकरण पर प्रस्तुत अपने प्रतिवेदन में पंचायती राज की अवधारणा को विकसित किया है। आपने पंचायती राज के आधार के रूप में लोकतान्त्रिक विकेन्द्रीकरण को महत्व दिया है। इसके अन्तर्गत आपने ग्राम स्तर पर पंचायतों, खण्ड स्तर पर पंचायत समिति (जनपद पंचायत) और जिला स्तर पर जिला परिषद् की स्थापना का सुझाव दिया है। इनमें से प्रत्येक से कुछ विशिष्ट कार्यों को सम्पन्न करने की अपेक्षा की गई है। इसी व्यवस्था को तीन-स्तरीय व्यवस्था (Three-Tier System) के नाम से पुकारा गया है। इस व्यवस्था के माध्यम से विकास कार्य के 'लोकतान्त्रिक विकेन्द्रीकरण' की सिफारिश की गई है।

लोतान्त्रिक विकेन्द्रीकरण का अभिप्राय यह है कि लोकतन्त्र के सिद्धान्तों के आधार पर विभिन्न संस्थाओं का निर्माण किया जाय और उनमें प्रशासनिक सत्ता का इस प्रकार से वितरण किया जाय कि जनता को पग-पग पर उसकी अनुभूति हो सके। ग्रामीण समाज में परिवर्तन लाने के व्यापक लक्ष्य को ध्यान में रखकर पंचायती राज संस्थाओं के माध्यम से एक गतिशील नेतृत्व के विकास पर जोर दिया गया। पंचायती राज के अन्तर्गत सत्ता को ग्रामीण खण्ड और जिला स्तर पर विभिन्न जन-प्रतिनिधियों को सौंपने और उन्हें ही विकास कार्यों का दायित्व सँभालने की दृष्टि से ग्राम-पंचायतों, पंचायत समितियों और जिला परिषदों का गठन किया गया। पंचायती राज के अन्तर्गत इसी तीन-स्तरीय व्यवस्था के माध्यम से सत्ता का निचले स्तरों पर वितरण किया गया। इसी को लोकतान्त्रिक विकेन्द्रीकरण के नाम से पुकारा गया। पंचायती राज का अर्थ स्पष्ट करते हुए 'तृतीय पंचवर्षीय योजना' (ए ड्राफ्ट आउट लाइन) में बताया गया कि यह ग्राम, खण्ड और जिला स्तर पर लोकप्रिय और लोकतान्त्रिक संस्थाओं का एक ऐसा अन्तर-सम्बन्धित संग्रह है जिसमें जनता के प्रतिनिधि एवं ग्राम पंचायतें, पंचायत समितियाँ तथा जिला परिषदें और साथ ही सहकारी संगठन सरकार की विभिन्न विकसित एजेन्सियों के समर्थन व सहायता के आधार पर एक टीम के रूप में मिलकर कार्य करते हैं।"

लोकतान्त्रिक विकेन्द्रीकरण की दृष्टि से राजस्थान ने पहल की और 2 अक्टूबर, सन् 1959 को नागौर नामक स्थान पर स्वर्गीय श्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा आन्ध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं अन्य राज्यों में भी इस व्यवस्था को लागू किया गया। इसका उद्घाटन किया गया। तत्पश्चात् उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब,आंध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश एवं अन्य राज्यों में भी इस व्यवस्था को लागू किया गया। वर्तमान में यह व्यवस्था देश के करीब-करीब सभी भागों में लागू है, केवल, नागालैण्ड, लक्ष्यद्वीप तथा मिजोरम को छोड़कर।

पंचायती राज संस्थाओं का संगठन (ORGANIZATION OF PANCHAYATI RAJ INSTITUIONS


पंचायती राज संस्थाओं का तीन-स्तरीय संगठन इस प्रकार है:जिला स्तर पर

जिला परिषद
       ।
खंड स्तर पर
       ।
पंचायत समितियां
       ।
ग्राम स्तर पर

ग्राम सभा 2. ग्राम पंचायत 3. न्याय पंचायत



(1) गाँव पंचायतें-ग्राम स्तर पर ग्राम सभा, ग्राम पंचायत एवं पंचायतें पायी जाती हैं। इन तीनों का हम यहाँ उल्लेख करेंगे।


(i) ग्राम सभा (Gram Sabha)

प्रत्येक गाँव में जहाँ ग्राम पंचायत है, एक गाँव सभा होती है। कई बार गाँव का आकार छोटा होने पर आस-पास के कुछ गाँवों की गाँव सभा में सम्मिलित कर लिया जाता है। 250 से 1,000 तक की जनसंख्या वाले गाँव की एक गाँव सभा होती है। ग्राम क्षेत्र के 18 वर्ष या इससे अधिक आयु के सभी वयस्क व्यक्ति गाँव सभा के सदस्य होते हैं। किन्तु पागल, सजा प्राप्त, कोढ़ी और सरकारी नौकर इसके सदस्य नहीं हो सकते। गाँव सभा की बैठक वर्ष में कम-से-कम दो बार आवश्यक है जो रबी और खरीफ की फसल काटने के बाद होती है। अपनी बैठक में ही गाँव सभा के सदस्य एक प्रधान और एक उप-प्रधान का चुनाव करते हैं। प्रधान गाँव सभा की बैठक की अध्यक्षता करता है। वह आवश्यकतानुसार किसी भी समय गाँव सभा की बैठक बुला सकता है, विशेषतः यदि 20 प्रतिशत सदस्यों, पंचायत निरीक्षक या विकास अधिकारी द्वारा बैठक की माँग की जाय। ऐसी स्थिति में माँग की तिथि के 30 दिन के अन्दर गाँव सभा की बैठक बुलायी जाती है और सदस्यों को 15 दिन पूर्व सूचना देनी होती है। गाँव सभा की बैठक की गणपूर्ति के लिए 20 प्रतिशत सदस्यों को उपस्थित होना आवश्यक है।

कर्तव्य एवं अधिकार—–गाँव सभा गाँव की उन्नति एवं विकास के लिए योजना बनाती है, वार्षिक बजेटका लेखा-जोखा करती है और नये वर्ष के बजट पर विचार कर उसे स्वीकार करती है। गाँव सभा को कर लगाने, ऋण लेने, सभा की सम्पत्ति का प्रबन्ध करने तथा भूमि-कर प्राप्त करने के अधिकार प्राप्त हैं। गाँव सभा गाँव पंचायत के सदस्यों का चुनाव करती है। गाँव सभा गाँव पंचायत की प्रगति का प्रतिवेदन तैयार करती है। गाँव सभा के प्रधान और उप-प्रधान के प्रति सदस्यों द्वारा प्रस्तुत अविश्वास प्रस्ताव पर भी विचार किया जाता है। गाँव विकास के लिए श्रमदान और अन्य कार्यक्रमों पर भी गाँव सभा में विचार किया जाता है।

(ii) ग्राम पंचायत (Gram Panchayat)

ग्राम की दिन-प्रतिदिन की समस्याओं को हल करने के लिए गाँव सभा को एक कार्यकारिणी बनाने की व्यवस्था की गयी है जिसे ग्राम पंचायत कहते हैं। ग्राम पंचायत में एक सरपंच, एक उप-सरपंच तथा गाँव के वार्डों के वार्ड पंच होते हैं। सरपंच का चुनाव गाँव के सभी वयस्क सदस्य मिलकर करते हैं। उप-सरपंच का चुनाव वार्ड पंचों द्वारा उन्हीं में से किया जाता है। ग्राम पंचायत के सभी निर्वाचित सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष है। इस सम्बन्ध में प्रत्येक प्रान्त में अलग-अलग नियम हैं। यदि राज्य सरकार चाहे तो सरपंच एवं वार्ड पंचों की अवधि को आगे भी बढ़ा सकती है। पंचायत के कार्यों को सुचारु रूप से चलाने के लिए चपरासी और क्लर्क भी नियुक्त किये जाते हैं। सरपंच ही पंचायतें की बैठकें बुलाता है और वही बैठक की अध्यक्षता करता है। उनकी अनुपस्थिति में उप-सरंपच यह कार्य करता है। ग्राम पंचायत की बैठक महीने में कम से कम एक बार अवश्य होनी चाहिए। उसके अतिरिक्त भी 1/3 सदस्यों की लिखित माँग के आधार पर 15 दिन के अन्दर बैठक बुलायी जानी चाहिए और 15 दिन पूर्व बैठक की सूचना सदस्यों को मिलना आवश्यक है। बैठक की गणपूर्ति के लिए कुल सदस्यों की संख्या का 1/3 भाग उपस्थित होना आवश्यक है। वास्तव में, ग्राम पंचायतें विकास पंचायतें हैं जो गाँवों में स्वास्थ्य, सफाई, शिक्षा, रोशनी, सिंचाई, कृषि, पशुपालन, आदि कार्यों को सम्पन्न करती हैं।

(iii) न्याय पंचायत

इसका चुनाव गाँव-सभा के द्वारा किया जाता है। तीन से पाँच गाँव-सभाओं का एक सर्किल होता है जिसके लिए एक न्याय पंचायत होती है। सन् 1954 में पंचायत अदालत का नाम बदलकर न्याय पंचायत कर दिया गया और इसके सदस्यों के चुनाव की पद्धति भी बदल गयी। नवीन संशोधन के अनुसार ग्राम पंचायत के पंचों के चुनाव के समय ही अधिक से अधिक पाँच अतिरिक्त पंचों के चुनाव की व्यवस्था की गयी। शासन द्वारा नियुक्त अधिकारी गाँव सभा द्वारा चुने हुए पंचायत के सभी पंचों में से इनकी योग्यता, शिक्षा, अनुभव तथा प्रतिष्ठा, आदि को ध्यान में रखते हुए निश्चित संख्या में सदस्यों को न्याय पंचायत के लिए नामजद या नियुक्त करेगा। न्याय पंचायत के लिए पंच की आयु कम-से-कम 30 वर्ष होनी चाहिए। एक न्याय पंचायत के अन्तर्गत आने वाले गाँवों की संख्या के आधार पर इसके सदस्यों की संख्या 15 से 25 तक होगी। न्याय पंचायत के द्वारा अपने सदस्यों में से ही किसी एक को बहुमत के आधार पर सरपंच चुना जाता है। न्याय पंचायत के सदस्य ग्राम पंचायत के सदस्य नहीं रह सकते।



अधिकार क्षेत्र-न्याय पंचायत को अपने क्षेत्र के लोगों के पारस्परिक विवादों के निर्णय का अधिकार प्राप्त है। दीवानी क्षेत्र में न्याय पंचायत 100 रुपये तक के मुकदमों का निर्णय कर सकती है। शासन द्वारा इस अधिकार को बढ़ाकर 500 रुपये तक किया जा सकता है। चल सम्पत्ति आदि की क्षति के लिए न्याय पंचायत 100 रुपये तक के दावे कर सकती है। फौजदारी क्षेत्र में मारपीट, हमला, 50 रुपये से कम मूल्य तक की चोरी, स्त्री की लज्जा अपहरण की कोशिश, अश्लील क्रियाएँ तथा अन्य सामान्य अपराध न्याय पंचायत के अधिकार में आते हैं। न्याय पंचायत किसी को कैद की सजा नहीं दे सकती, केवल 100 रुपये तक का जुर्माना ही कर सकती है। न्याय पंचायत अपने प्रति हुई मान-हानि के लिए किसी को अपराधी घोषित कर उस पर पाँच रुपये तक का जुर्माना कर सकती है।

गाँव सभा, ग्राम पंचायत तथा न्याय पंचायत पर नियन्त्रण बनाये रखने का राज्य सरकार को व्यापक अधिकार प्राप्त है। राज्य सरकार इनमें से किसी भी संस्था को अनुचित कार्य करने से रोक सकती है। यदि राज्य सरकार को यह विश्वास हो जाय कि कोई ग्राम पंचायत या न्याय पंचायत अपने कर्तव्यों का ठीक से पालन नहीं कर रही है तो वह उसे भंग कर सकती है।



(2) जनपद पंचायत (पंचायत समिति) - तहसील या खण्ड-स्तर पर बनी पंचायत समिति या जनपद पंचायत को जन प्रतिनिधियों के माध्यम से अपने क्षेत्र के शासन तथा विकास कार्यों के संचालन का भार सँभालने का अवसर प्रदान किया गया। पंचायत समिति के एक प्रधान और दो उप-प्रधान होते हैं। इसके अन्य सदस्यों में उस क्षेत्र का सांसद (M.P.) तथा विधायक (M. L. A.), महिला सदस्य एवं अनुसूचित जाति एवं जनजाति के प्रतिनिधि होते हैं। इसके सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष होता है किन्तु 2/3 बहुमत से इसके प्रधान व उपप्रधान के विरुद्ध अविश्वास पारित कर कभी भी उन्हें हटा सकते हैं। पंचायत समिति को अपने क्षेत्र के विकास हेतु व्यापक कार्यक्रम बनाने तथा उसे ग्राम पंचायतों एवं स्थायी समितियों के द्वारा पूरा करने का अधिकार दिया गया है। विभिन्न ग्राम्य संस्थाओं के लिए तकनीकी तथा प्रशासनिक सहायता प्रदान करने का कार्य भी पंचायत समिति के द्वारा किया जाता है। पंचायत समिति कृषि एवं सामुदायिक विकास सम्बन्धी विकास कार्यक्रमों को क्रियान्वित करने, प्राथमिक शिक्षा, पशुपालन, यातायात व संचार, सहकारिता, कुटीर उद्योग, संकटकालीन सहायता, आँकड़ों के संग्रहण, वन तथा भवन-निर्माण, आदि विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करती है। इन कार्यों को सम्पन्न करने का उत्तरदायित्व पंचायत समितियों को सौंपा गया है। इससे जनता को अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप अपने विकास की योजनाएँ बनाने और उन्हें स्वयं क्रियान्वित करने का पहली बार अवसर मिला है। ग्रामों के सर्वांगीण विकास का दायित्व स्थानीय प्रतिनिधियों को सौंपा गया है, परन्तु उनके मार्गदर्शन और आवश्यकतानुसार उन्हें परामर्श देने हेतु जिला-स्तर पर जिला परिषद् का गठन किया गया है।



(3) जिला परिषद्-ग्राम एवं खण्ड स्तर के समान ही जिला-स्तर पर जिला परिषद् की स्थापना की गयी है। इसमें ग्रामीण जनता के प्रतिनिधियों को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। जिला प्रमुख इसका चेयरमेन होता है जिसका चुनाव जिले की पंचायत समितियों के प्रधान और उप-प्रधान करते हैं। उस जिले के सांसद एवं विधायक भी इसके सदस्य होते हैं। इनके अतिरिक्त, महिला एवं अनुसूचित जातियों के भी प्रतिनिधि होते हैं। इनकी संख्या अलग-अलग है। यह परिषद् प्रमुखतः पर्यवेक्षण एवं सलाहकार समिति के रूप में कार्य करती है। यह निचले स्तर की पंचायती राज संस्थाओं में समन्वय बनाये रखने, उनके कार्यों की देखभाल करने और समय-समय पर उन्हें आवश्यक निर्देश देने की दृष्टि से महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस परिषद् के कार्य बजट निरीक्षण, विभिन्न खण्ड समितियों तथा पंचायत के क्षेत्र में चल रहे विकास कार्यक्रमों में सामंजस्य बनाये रखने, पंचायतों का निरीक्षण, राज्य द्वारा प्राप्त आदेशों का पालन, सहकारिता, शिक्षा, स्वास्थ्य तथा पंचायत एवं खण्ड समितियों के सम्बन्ध में शासन को सुझाव देना, आदि हैं।


पंचायती राज एवं विकास

(ग्रामीण पुनर्निर्माण में पंचायती राज का योगदान(PANCHAYATI RAJ AND DEVELOPMENT)

पंचायती राज संस्थाएँ ग्रामीण पुनर्निर्माण और पुनरुत्थान में निम्नांकित प्रकार से महत्वपूर्ण योग देती हैं

(1) सार्वजनिक कल्याण में ग्राम पंचायतों का योगदान-गाँवों में सार्वजनिक जीवन के क्षेत्र में अनेक समस्याएँ व्याप्त हैं, उन्हें हल करने के लिए ग्राम पंचायतें निम्नांकित प्रकार से अपना योगदान दे सकती हैं:

(क) जन स्वास्थ्य के सुधार एवं रोगों के उपचार में सहायता-ग्राम पंचायतें सार्वजनिक स्वास्थ्य को सुधारने, लोगों को रोगों से दूर रखने, संक्रामक रोगों की रोकथाम करने, रोगों की चिकित्सा व उपचार करने एवं लोगों के स्वास्थ्य के स्तर को ऊँचा उठाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। वे स्वास्थ्य केन्द्रों व अस्पतालों की स्थापना कर सकती हैं तथा दवाओं एवं स्वास्थ्य सम्बन्धी साहित्य का वितरण कर सकती हैं। ग्राम पंचायतें लोगों को बीमारियों से आगाह कर सकती हैं और स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारी व सूचना देती हैं।

(ख) सफाई का प्रबन्ध-ग्राम पंचायतें गाँवों में सफाई का प्रबन्ध करती हैं, गन्दे पानी के लिए नालियाँ और खाद एवं गन्दगी डालने के लिए गड्ढे बनवा सकती हैं। सफाई के अभाव में ही गाँवों में अनेक बीमारियाँ फैलती हैं। पंचायतें लोगों को सफाई रखने के महत्व से अवगत करा सकती हैं, गन्दे नालों व पोखरों की सफाई करा सकती हैं। मलेरिया आदि रोगों से बचने के लिए कीटनाशक दवाओं का छिड़काव कराती हैं।

(ग) शुद्ध पेय जल की व्यवस्था-शुद्ध पेय जल के अभाव में अनेक बीमारियाँ फैलती हैं। ग्राम पंचायतें ब्लीचिंग पाउडर एवं लाल दवा डलवाकर कुओं एवं जलाशयों के पानी को पीने योग्य बनाती हैं।

(घ) यातायात की सुविधा-ग्राम पंचायतें गाँवों में कच्ची व पक्की सड़कें बनवा सकती हैं और गाँवों को बाजारों, मण्डियों एवं मुख्य सड़कों से जोड़ सकती हैं। वे पुरानी सड़कों की मरम्मत करवा सकती हैं, उन पर रौशनी एवं छाया की व्यवस्था कर सकती हैं। यातायात के साधनों के अभाव में ग्रामीणों को अपने माल का उचित मूल्य नहीं मिल पाता और वे कई सुविधाओं से वंचित रह जाते हैं।

(च) मनोरंजन का प्रबन्ध-ग्रामवासियों का जीवन कठिन परिश्रम का है। थकान से मुक्ति एवं ताजगी के लिए मनोरंजन आवश्यक है। ग्राम पंचायतें लोगों के लिए खेल-कूद, नाटक, चल-चित्र, भजन-कीर्तन, रेडियो एवं टेलीविजन, आदि की व्यवस्था कर उन्हें मनोरंजन प्रदान करती हैं।

(छ) प्राकृतिक विपदाओं में सहायता-गाँववासियों को बाढ़, अकाल, महामारी, सूखा, आदि प्राकृतिक विपदाओं का अक्सर सामना करना पड़ता है। कष्ट के इन क्षणों में ग्राम पंचायतें लोगों को आर्थिक सहायता दे सकती हैं और कष्ट से न घबराने के लिए प्रेरित करती हैं।

(ज) सांस्कृतिक उन्नति में सहायक-ग्राम सांस्कृतिक दृष्टि से पिछड़े हुए हैं। उनमें कला व साहित्य के प्रति रुचि पैदा करने एवं उनकी सांस्कृतिक उन्नति करने में ग्राम पंचायतें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।



(2) सामाजिक जीवन में ग्राम पंचायतों का योगदान-ग्रामीण सामाजिक जीवन के पुनर्निर्माण में ग्राम पंचायतें निम्नांकित प्रकार से योग देती हैं :


(क) शिक्षा की व्यवस्था - भारतीय गाँवों में अशिक्षा व्याप्त है और अधिकांश लोगों को तो अक्षर ज्ञान भी नहीं है। अशिक्षा ने उनके लिए अनेक आर्थिक व सामाजिक समस्याएँ पैदा कर दी हैं। इस समस्या के समाधान के लिए पंचायतें प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षण संस्थाएँ खोल सकती हैं, वे प्रौढ़ शिक्षा, पुस्तकालय एवं वाचनालय आदि की व्यवस्था करती हैं।

(ख) मद्य निषेध एवं मादक पदार्थों के उपयोग पर रोक-ग्रामवासी शराब एवं अनेक मादक पदार्थों, जैसे भाँग, अफीम, गाँजा, चरस, आदि का उपयोग करते हैं। नशीले पदार्थों का स्वास्थ्य पर कुप्रभाव पड़ता है, इससे आर्थिक हानि एवं नैतिक पतन होता है। शराब-वृत्ति एवं नशीले पदार्थों के सहयोग को रोकने के लिए पंचायतें प्रभावशाली ढंग से कार्य कर सकती हैं और लोगों को समझा सकती हैं।

(ग) मातृत्व एवं शिशु कल्याण में सहायक-माताओं एवं शिशुओं की देखभाल एवं स्वास्थ्य रक्षा हमारा नैतिक एवं राष्ट्रीय दायित्व है। गाँवों में प्रसूति की सुविधाओं का अभाव होने के कारण अनेक स्त्रियाँ प्रसव के समय काल-कलवित हो जाती हैं। शिशु जो कि राष्ट्र की भविष्य की सम्पत्ति हैं, के पालन-पोषण की भी गाँवों में उपयुक्त सुविधाएँ नहीं हैं। ग्राम पंचायतें माताओं एवं बच्चों को स्वास्थ्य एवं चिकित्सा की सुविधा दिलाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान देती हैं।

(घ) समाज सुधार में योग-भारतीय गाँवों में अनेक सामाजिक समस्याएँ, जैसे बाल-विवाह, विधवा पुनर्विवाह निषेध, अस्पृश्यता, पर्दा प्रथा, आदि व्याप्त हैं जो सामाजिक प्रगति में बाधक रही हैं। ग्राम पंचायतें उचित सामाजिक पर्यावरण का निर्माण कर एवं जनजागरण द्वारा इन समस्याओं के समाधान में सहायता प्रदान करती हैं।

(च) शोषण से मुक्ति-ग्रामों में एक प्रमुख समस्या बंधुआ मजदूरों की है। 1976 के कानून द्वारा बंधुआ मजदूर प्रथा को समाप्त कर दिया गया है। ग्राम पंचायतें ऐसे बंधुआ मजदूरों का पता लगाने एवं उन्हें मुक्त कराने में योग दे सकती हैं।


(3) आर्थिक जीवन में ग्राम पंचायतों का योगदान-गाँवों की आर्थिक स्थिति को सुधारने एवं उनकी प्रगति के लिए ग्राम पंचायतें निम्नांकित प्रकार से योग दे सकती हैं:

(क) कृषि में सुधार-भारत एक कृषिप्रधान देश है। अधिकांश ग्रामीणों का जीवन-यापन कृषि पर निर्भर है। भारतीय कृषि बड़ी दयनीय स्थिति में है। वैज्ञानिक यन्त्रों का ज्ञान, उन्नत बीज एवं खाद के अभाव, रोग एवं प्राकृतिक विपदाओं के कारण कृषि में कम उत्पादन होता है। कृषि की उन्नति, उन्नत खाद एवं बीज तथा वैज्ञानिक यन्त्र व ज्ञान उपलब्ध कराने में ग्राम पंचायतें ग्रामीणों की सहायता कर सकती हैं।

(ख) सिंचाई की व्यवस्था-भारतीय कृषि मानसून का जुआ है, सिंचाई के साधनों के अभाव के कारण फसलें नष्ट हो जाती हैं और लोगों को गरीबी एवं अभाव में दिन बिताने होते हैं। ग्राम पंचायतें तालाबों, नहरों, कुओं का निर्माण एवं मरम्मत कर सिंचाई की सुविधाएँ प्रदान कर सकती हैं।

(ग) भूमिहीन मजदूरों की सहायता-गाँवों में अधिकांश भूमि कुछ ही लोगों एवं भूस्वामियों के पास है और अनेक व्यक्ति भूमिहीन हैं। ऐसे भूमिहीन लोगों को कृषि भूमि उपलब्ध कराने एवं उनकी समस्या का समाधान करने में ग्राम पंचायतें सहायता प्रदान कर सकती हैं।

(ख) पशुओं की नस्ल सुधार में सहायता-ग्रामीण पशु भी दयनीय स्थिति में हैं और अन्य देशों की तुलना में दुधारू पशु दूध कम देते हैं। ग्राम पंचायत ग्रामीणों को उन्नत किस्म के पशु प्रदान कर सकती हैं तथा पशुओं के रोग निवारण एवं चिकित्सा की सुविधाएँ दे सकती हैं।

(घ) उद्योग-धन्धों का विकास- -ग्राम पंचायतें गाँवों में छोटे-छोटे कुटीर धन्धों की स्थापना एवं विकास में सहायता कर सकती हैं। उद्योग के लिए पानी, बिजली, ऋण एवं मशीनों को जुटाने में सहायता कर सकती हैं जिससे गरीबी समाप्त करने में मदद मिलेगी।

(छ) सहकारी समितियों का विकास-ग्रामीणों की आर्थिक दशा को उन्नत करने लिए विभिन्न प्रकार की सहकारी समितियों की स्थापना की जानी चाहिए। ये सहकारी समितियाँ कृषि एवं ऋण सहायता करने एवं उपयोग की वस्तुओं की उचित कीमत दिलवाने का कार्य कर सकती हैं। गाँव में सहकारी समितियों की स्थापना एवं प्रसार में ग्राम पंचायतें महत्वपूर्ण योगदान दे सकती हैं।


(4) राजनीतिक जीवन में ग्राम पंचायतों का योगदान- ग्राम पंचायतें ग्रामों के राजनीतिक जीवन के पुनर्निर्माण में निम्नांकित प्रकार से योग दे सकती हैं :


(क) ग्रामीण नेतृत्व का विकास-ग्राम पंचायतें ग्रामों में योग्य एवं चरित्रवान नेतृत्व के विकास में योग दे सकती हैं और गाँव नेतृत्व के गुणों को विकसित करने में पृष्ठभूमि प्रदान कर सकती हैं।

(ख) शान्ति एवं सुरक्षा-ग्राम पंचायतें गाँवों में शान्ति एवं सुरक्षा बनाये रखने का कार्य कर सकती हैं और इस दृष्टि से स्वयंसेवकों के संगठन बना सकती हैं।

(ग) प्रशासन में सहायता-ग्राम पंचायतें ग्रामीण प्रशासन एवं नियन्त्रण का कार्य करती हैं और इस दृष्टि से सरकार को सहायता प्रदान करती हैं।

(घ) न्याय की व्यवस्था-ग्रामीणों को शीघ्र एवं सस्ता न्याय दिलाने की दृष्टि से ग्राम पंचायतें महत्वपूर्ण कार्य कर रही हैं। ये ग्राम पंचायतें समझा-बुझाकर झगड़ों को निपटाने में सहायता प्रदान करती हैं।

(च) नागरिकता की शिक्षा-ग्राम पंचायतें ग्रामवासियों को स्वतन्त्र एवं प्रजातन्त्र भारत के सुयोग्य नागरिक बनाने, उन्हें अपने कर्तव्यों एवं अधिकारों के प्रति जागरूक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।


पंचायती राज की समस्याएँ(PROBLEMS OF PANCHAYATI RAJ)

पंचायती राज संस्थाओं से सम्बन्धित अनेक समस्याएँ हैं। उनमें से कुछ समस्याएँ इस प्रकार हैं :

(1) पंचायती राज से सम्बद्ध सरकारी एवं गैर-सरकारी सदस्यों में सत्ता को लेकर तनावपूर्ण सम्बन्ध पाये जाते हैं।

(2) पंचायती राज से सम्बन्धित एक अन्य समस्या वित्तीय साधनों का अभाव है। अतः गाँवों में विकास कार्य पूरे नहीं हो पाते हैं।

(3) पंचायती राज संस्थाओं के लिए चुने गये नेताओं में से अधिकांश को साधारणतः अपनी जाति का समर्थन प्राप्त होता है। ऐसी स्थिति में नेताओं का दृष्टिकोण परम्पराबादी बना रहता है और इनसे आमूल-चूल परिवर्तनों की आशा नहीं की जा सकती।

(4) ऑस्कर लेविस ने बताया है कि परम्परागत पंचायतों के समाप्त हो जाने के पश्चात् ग्रामीण क्षेत्रों में अनेक गुट या घड़े बन गये हैं। इनसे गाँवों में तनाव और संघर्षों में वृद्धि हुई है।

(5) यह भी देखा जाता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में अनेक योग्य व्यक्ति पंच, सरपंच, प्रधान अथवा अध्यक्ष पद के दायित्व को सँभालना दलगत राजनीति के कारण पसन्द नहीं करते। योग्य और ध्येयनिष्ठ व्यक्तियों का अभाव भी पंचायती राज संस्थाओं के कार्य-संचालन में बाधक है।

(6) पंचायती राज व्यवस्था के अन्तर्गत ग्राम सभा को शक्तिशाली बनाने का प्रयास नहीं किया गया है। परिणाम यह हुआ कि ग्रामीण पुनर्निर्माण सम्बन्धी योजनाओं में आशाओं के अनुरूप जनसहयोग प्राप्त नहीं हो सका।

(7) पंचायती राज में ग्राम, खण्ड और जिला स्तर पर कार्य एवं कार्यकर्ताओं में समन्वय का अभाव होने से विकास कार्य समुचित रूप से नहीं हो पाते।


पंचायती राज संस्थाओं को सफल बनाने हेतु सुझाव
(SUGGETIONS FOR SUCCESSFUL WORKING OF PANCHAYATI RAJ INSTITUTIONS)


(1) पंचायती राज संस्थाओं को सफल बनाने हेतु यह आवश्यक है कि इनसे सम्बद्ध सरकारी अधिकारियों और जन-प्रतिनिधियों के बीच सन्देह और अविश्वास को दूर किया जाय और सम्बन्धों में सुधार लाया जाय।

(2) पंचायती राज की सफलता बहुत कुछ मात्रा में उचित प्रकार के नेतृत्व के विकास पर निर्भर करती है। योग्य, शिक्षित, विकासोन्मुख तथा आधुनिकीकरण का हामी नेतृत्व ग्रामीण क्षेत्रों के सर्वांगीण विकास हेतु अत्यन्त आवश्यक है।

(3) कुछ लोगों की मान्यता है कि पंचायती राज संस्थाओं के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में गुटबन्दी और दलगत राजनीति पनपी है जो ग्रामों के सर्वांगीण विकास में बाधक है, अतः इनसे ग्रामों को मुक्त रखा जाना चाहिए।

(4) पंचायती राज संस्थाओं को अपने-अपने क्षेत्र में कार्य करने की पूर्ण स्वतन्त्रता होनी चाहिए तथा सरकारी अधिकारियों के हस्तक्षेप को रोका जाना चाहिए।

(5) पंचायती राज संस्थाओं के सफल कार्य संचालन के लिए इनके वित्तीय साधनों को बढ़ाना नितान्त आवश्यक है।

(6) अनेक अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि ग्रामीण क्षेत्रों में विकास कार्यक्रमों का लाभ अधिकांशतः उन्हीं लोगों को मिल पाया है जो पहले से सम्पन्न थे। सामाजिक न्याय की दृष्टि से विकास योजनाओं के लाभ का वितरण सभी लोगों में समान रूप से होना चाहिए और कमजोर या गरीब वर्ग के लोगों की आर्थिक स्थिति को ऊँचा उठाने का विशेष प्रयत्न किया जाना चाहिए।

(7) गाँवों में व्याप्त गरीबी और अशिक्षा को दूर किया जाय जिससे ग्रामीण लोग पंचायतों के महत्व को समझें और उनमें भाग लें।

(8) शिक्षित व्यक्तियों को ही चुनाव लड़ने का अधिकार हो ।

(9) पंचायतों के अधिकारों एवं आर्थिक स्रोतों में वृद्धि की जाय ।

(10) पंचायत द्वारा बनायी गई योजना के क्रियान्वयन में लोगों का सहयोग लिया जाय ।


Chhattisgarh mein panchayati raaj kaisa hai | छत्तीसगढ़ में पंचायती राज कैसा है।

TRIBES IN CHHATTISGARH | छत्तीसगढ़ में जंजातियाँ एवं संवैधानिक प्रावधान


Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.