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छत्तीसगढ़ की अनोखी परम्परा - छत्तीसगढ़ मे मिट्टी के रावण का वध

त्तीसगढ़ कि अनोखी संस्कृतिया हमेशा से लोगो को अचंभित और आकर्षित करते रही है| ऐसी ही अनोखी संस्कृति है धमतरी के सिहावा नगरी की जो सारे देश से अलग है| यहाँ दशमी कि जगह एकादशी को पर्व मनाते है| रावण कि जगह नग्न महिरावण का वध होता है| वो भी मिट्टी से पुतला बना कर काली के खड्ग से वध होता है| यहाँ महिलाओ का जाना वर्जित है| ये प्रथा 9वी शताब्दी से चल रही है| और अब इलाके के लोग इस प्रथा के संरक्षण के लिए सरकार से भी मदद चाहते है|

श्रिंगी ऋषि पर्वत के इर्द गिर्द बसा सिहावा गाँव यहा का पौराणिक महत्व भी है और यहाँ से छत्तीसगढ़ कि गंगा यानी महानदी का भी उद्गम होता है| 8वी 9वी शताब्दी से ये क्षेत्र बस्तर के राजा कर्णदेव और भंजदेव की रियासत का हिस्सा है और उसी कालखंड से यहाँ से अनोखा दशहरा मनाया जा रहा है,जिसमे एकादशी के दिन मिट्टी के महिरावण का पुतला बनाया जाता है|और आस - पास के गाँव वाले इकठा होते है रावण के वध को देखने लिए |

शीतला मंदिर में माता काली का आह्वान होता है| देवी को जगा कर वहाँ रखा हुआ माता काली का खड्ग उठाने की अनुमति ली जाती है और उसे लेकर पुजारी जाता है| महिरावण के नग्न पुतले का लिंग काटा जाता है| इसके बाद लोग पुतले की मिट्टी को लेकर अपने घरो मे ले जाते हैं| इस प्रथा के पीछे एक कथा है| सिहावा का पुलिस थाना भी इस कथा और इस मान्यता से जुड़ा है| इस थाने मे खंभेश्वरी देवी है और दशहरे के दिन यहा थाने के पेड़ पर नारियल बांध कर बंदूक से निशाना साधा जाता है|



कहते हैं कि जिसपर माँ खंभेश्वरी की कृपा होती है उसी की गोली सही निशाने पर लगती है| देवी को देख कर महिरावण की वासना जाग गई थी और उसने अपने वस्त्र उतार दिए थे| इससे क्रोधित होकर माता ने महिरावण का वध किया था| ये एक तरह से वासना जैसी बुराई पर प्रहार है|शायद ही इस तरह का दशहरा कहीं और मनाया जाता होगा| ये परंपरा इस क्षेत्र के लिए अनमोल धरोहर है| क्षेत्र के बुजुर्ग और युवा इस प्रथा को हमेशा के लिए कायम रखना चाहते है, लेकिन साथ मे सरकार से भी अब मदत की आस रखते हैं|

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