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छत्तीसगढ़ राजस्व के अधिकारी - chhattisgarh collector

राजस्व विभाग शासन का एक अत्यंत महत्वपूर्ण विभाग है यह विभाग न केवल राजस्व कार्यों का दायित्व निर्वहन करता है बल्कि शासन के अन्य विभागों के कार्यों में समन्वय एवं शासकीय योजनाओं को क्रियान्वित कराने में भी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता हैं। राजस्व अधिकारी तो पदेन मजिस्ट्रेट भी होते है अतः विधि व्यवस्था की प्रक्रिया को भी आवश्यकता अनुसार संचालित करवाते हैं। चुनाव कार्य एवं जनगणना कार्य संबंधित दायित्वों का निर्वहन भी इस विभाग की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। इस प्रकार किसी भी प्रशासनिक कार्य की गतिविधियों के केन्द्र बिन्दु के रूप में राजस्व विभाग शासकीय कार्यों के संचालन में अपनी सर्वोच्चतम भूमिका का निर्वहन करता है। पटवारी इसी राजस्व विभाग की अंतिम किन्तु सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है।

राजस्व विभाग से संबंधित संगठन

  1. राजस्व मंडल :- राजस्व विभाग का शिखर संगठन राजस्व मण्डल है। राज्य में छत्तीसढ़ राजस्व की स्थापना 28 नवम्बर 2002 को की गई है। छत्तीसगढ़ राज्य में इसका मुख्यालय बिलासपुर जिले में स्थित है। छत्तीसगढ़ राज्य राजस्व मण्डल के प्रथम अध्यक्ष वी.के.एस.रे थे। वस्तुतः राजस्व मण्डल राजस्व के न्यायालय के रूप में अपना कार्य संचालित करता है।

राजस्व मामलों की सुनवाई, अपील व पुनरीक्षण के अधिकार उसे प्राप्त है। राजस्व मण्डल की न्यायपीठ में राजस्व के अतिरिक्त आबकारी, विक्रयकर, वाहन कर, मुद्रांक, कृषि व सहकारिता राजस्व के मामले भी होते है। 

राजस्व मंडल के निर्णय शासन के विरूद्ध होने की स्थिति में भी वह शासन पर बाध्यकारी है। राजस्व मण्डल के निर्णयों के विरूद्ध उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है।

 

  1. संभागीय आयुक्त :- आयुक्त अपने संभाग का सर्वोच्च प्रशासनिक प्रमुख होता है। राजस्व मसलें में वह न्यायिक अधिकारी भी होता है। जब छ.ग. राज्य का निर्माण हुआ था उस समय राज्य में 3 संभाग रायपुर, बिलासपुर एवं बस्तर था किन्तु अब राज्य का चौथा (नवीनतम) संभाग सरगुजा को बनाया गया है।

इस प्रकार छत्तीसगढ़ राज्य प्रशासनिक दृष्टिकोण से 4 संभागों में विभक्त है। अपर कलेक्टर एवं कलेक्टर के आदेशों की अपील की सुनवाई आयुक्त कार्यालय द्वारा सुनी जाती है तथा आयुक्त के आदेश में विरूद्ध राजस्व मंडल में अपील की जा सकती है।

आयुक्त द्वारा अपने संभाग के जिलों में सतत् निरीक्षण रखते हुए प्रशासनिक कार्यों का संचालन किया जाता है तथा जिले के कार्यों की समीक्षा करते हुए आवश्यक दिशा-निर्देश देते हुए राज्य के कल्याणकारी उद्देश्यों की सम्पूर्ति की जाती है।

 

  1. आयुक्त भू-अभिलेख:- भू-अभिलेख एवं बंदोबस्त विभाग का सर्वोच्च अधिकारी आयुक्त भू अभिलेख होता है। छत्तीसगढ़ राज्य में आयुक्त भू-अभिलेख का मुख्यालय रायपुर में है। आयुक्त भू अभिलेख द्वारा राज्य के समस्त भू-अभिलेखों का समेकित विवरण व भू-प्रबंधन का कार्य किया जाता है।

राज्य में राजस्व सर्वे तथा बंदोबस्त संबंधित कार्य भी आयुक्त भू-अभिलेख का दिशा-निर्देशन में किये जाते है । भू-प्रबंधन के कार्य को संपादित करते हुए राज्य में भू-अधिकार अभिलेख स्थायी रुप से तैयार किये जा रहे है। जिससे कि कृषकों को स्थायी भू-अधिकार पुस्तिका मिले व भू अभिलेखों को अनुरक्षण हो सके।

वस्तुतः भू-अभिलेखों तथा उनका शुद्धिकरण का दायित्व इसी विभाग को है। संभाग, जिले, तहसील व ग्राम पंचायत स्तर पर इस विभाग के प्रतिनिधियों द्वारा अभिलेख बनाये जाते हैं, इन अभिलेखों में भू-स्वामियों, पट्टेदारों, मौसमी कृषकों के नाम, भू-खण्ड संख्या, सर्वे क्र., सिंचित-असिंचित क्षेत्रफल, देय भू राजस्व व लगान आदि दर्ज होता है।

वस्तुत: पटवारी इसी विभाग की मूल कड़ी है। आयुक्त भू- अभिलेख कार्यालय के अन्तर्गत राजस्व निरीक्षक एवं पटवारी के प्रशिक्षण स्कूल भी राज्य में स्थित है।

 

  1. कलेक्टर:- जिले का सर्वोच्च प्रशासनिक पद कलेक्टर का होता है। जिले के समस्त विभागों की मुख्य धुरी कलेक्टर को ही माना जाता। राजस्व संबंधित मामलों में कलेक्टर के निर्देशन में ही जिले का समस्त राजस्व कार्य संचालित होता है। राजस्व वसूली एवं राजस्व नीति के क्रिर्यान्वयन का दायित्व मुख्य रुप से कलेक्टर के नेतृत्व में ही होता है।

कलेक्टर भूमि संबंधित मामलों में न्यायीन कार्य भी करता है। वस्तुत: ग्रामीण एवं नगरीय क्षेत्रों में कृषि भूमि पर भू-राजस्व तथा कृषि भूमि के अन्य उपयोग पर डायवर्सन एवं भू भाटक का निर्धारण कलेक्टर द्वारा ही किया जाता है। कलेक्टर पदेन डिस्ट्रिक मजिस्ट्रेट होते है एवं जिले की कानून व्यवस्था के कार्य का भी संचालन करते है।

वस्तुतः कलेक्टर जिले में राज्य शासन का वह सर्वोच्च शासकीय | प्रतिनिधि है जो कि समस्त विभागों के जनकल्याणकारी कार्यों एवं गतिविधियों का निरीक्षण, परीक्षण व मागदर्शन करके एक सक्रिय समन्वय की भूमिका का निर्वहन करता है। चुनाव, जनगणना, आबकारी, खनिज, खाद्य, महिला एवं बाल विकास, परिवार कल्याण, आदिम जाति आदि विभागों का भी निरीक्षण एवं शासन के नीति निर्देश का क्रियान्वयन करवाना भी कलेक्टर का मुख्य दायित्व होता है। कलेक्टर जिला प्रमुख होने के नाते शासन के अन्य विभागों पर भी अपना नियंत्रण रखते हुए शासकीय योजनाओं को दिशा देता है।

 

  1. अनुविभागीय अधिकारी :- अनुविभागीय अधिकारी का कार्यक्षेत्र प्रशासनिक होने के साथ-साथ न्यायिक भी है। तहसील के राजस्व न्यायालयों की अपीले उसके द्वारा ही सुनी जाती है।

इस प्रकार कानून व्यवस्था साथ साथ दण्ड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत भी अनुविभागीय अधिकारी न्यायालयीन कार्य करता है।

अनुविभागीय अधिकारी प्रत्यक्षतः कलेक्टर के नियंत्रण में होता है। तथा अनुविभागीय स्तर पर समस्त प्रशासनिक कार्यों पर कलेक्टर के निर्देशानुसार अपना नियंत्रण रखता है।

 

  1. तहसीलदार / नायब तहसीलदार :- प्रत्येक जिलें में अनेक तहसील होती है एवं प्रत्येक तहसील में एक तहसीलदार एवं एक से अधिक नायब तहसीलदार पदस्थ होते हैं।

तहसीलदार / नायब तहसीलदार राजस्व न्यायालयों के रुप में कार्य करते है एव प्रशासनिक कार्य कलेक्टर एवं अनुविभागीय अधिकारी के निर्देशानुसार करते हैं।

तहसीलदार/नायब तहसीलदार न्यायलय आदेशों की अपील अनुविभागीय अधिकारी राजस्व के समक्ष प्रस्तुत होती है।

राजस्व महकमे के समस्त कार्य एवं कलेक्टर एवं अनुविभागीय अधिकारी द्वारा दिये गये समस्त निर्देशों का क्रियान्वयन करवाना भी इनका प्रमुख दायित्व है ।

 

  1. अधीक्षक भू-अभिलेख / सहायक अधीक्षक भू-अभिलेख :-जिले में भू -अभिलेख संबंधित समस्त कार्य व भूमि प्रबंधन का दायित्व इन अधिकारियों द्वारा किया जाता है।

           अधीक्षक भू-अभिलेख, डायर्वसन, सीलिंग भूमि एवं सर्वे आदि का कार्य भी जिले स्तर पर करते हैं।

 

  1. राजस्व निरीक्षक :- प्रशासनिक दृष्टि से राज्य संभाग, जिले एवं तहसील में विभक्त किया गया है वहीं तहसील को भी इसी प्रशासनिक दृष्टि से राजस्व निरीक्षक वृत्तों में बांटा गया है प्रत्येक वृत्त पर 1 राजस्व निरीक्षक पदस्थ होते है तथा उस वृत्त में अनेक पटवारी हल्के होते हैं।

राजस्व निरीक्षक अपने वृत्त के अन्तर्गत पदस्थ पटवारियों के कार्यों पर भी निरीक्षण व नियंत्रण रखते है।

वस्तुत भू-अभिलेखों के अद्यतन व शुद्धता की जांच तथा राजस्व व कृषि विषयक आँकड़ों के रखने का उत्तरदायित्व भी राजस्व निरीक्षक का होता है।

 

  1. पटवारी :- राजस्व विभाग का अन्तिम किन्तु सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण इकाई पटवारी को माना जाता है, क्योंकि आमजन से उसका सर्वाधिक प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है। प्रसिद्ध विद्वान डॉ. शुक्ला लिखते है कि 44 राजस्व महकमें रूपी विशाल अट्टालिका की नींव का पत्थर पटवारी ही होता है। एक या एक से अधिक ग्राम या वार्ड का एक पटवारी हलका होता है जिस पर एक पटवारी पदस्थ किया जाता है।

भू-अभिलेखों की तैय्यारी करना उनकी शुद्धता रखना, फसलों का दायित्व है। पटवारी ही खतौनी में भू-राजस्व खातेदार प्रतिवर्ष दर्ज करता है तथा वसूली हेतु सूची तैयार कर तहसीलदार को देता है एवं बकाया भू-राजस्व की सूची भी वह तैयार कर वह देता है। ग्राम स्तर वार्ड स्तर के प्रत्येक कार्य में पटवारी का सहयोग लिया जाता है।

वस्तुत: पटवारी मूलतः भू-अभिलेख का कर्मचारी है किन्तु वह अपने कर्त्तव्यों के साथ-साथ तहसीलदार के नियन्त्रण में राजस्व तथा प्रशासनिक कार्य भी करता है ।

बंटवारे व वसूली तथा अविवादित नामांतरण के अधिकार ग्राम पंचायत को सौंपे गये है, पटवारी ग्राम पंचायत या नगरीय क्षेत्रों के वार्ड में उपस्थित रहकर राजस्व कार्य संचालित करता है। इस प्रकार पटवारी राजस्व कार्यों को अमली जामा पहनाने में अपनी प्रमुख भूमिका का निर्वहन करता है।

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