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माखनलाल चतुर्वेदी जी का जीवन परिचय -

जीवन परिचय- एक भारतीय आत्मा' नाम से प्रसिद्ध माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म 4 अप्रैल सन् 1888 को मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के बावरी नामक ग्राम में हुआ था। आपके पिता नंदलाल चतुर्वेदी अध्यापक थे। आपकी प्रारंभिक शिक्षा ग्रामीण पाठशाला में हुई। तत्पश्चात् आपने अंग्रेजी, संस्कृत, बंगाली, मराठी और गुजराती भाषा का घर में ही अध्ययन किया। आपके जीवन तथा साहित्य पर गणेशशंकर विद्यार्थी का अत्यधिक प्रभाव पड़ा। विद्यार्थीजी के संसर्ग में आने के कारण आप स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े, फलतः आपको कई बार जेल भी जाना पड़ा। 

आपका जीवन राष्ट्र तथा साहित्य को समर्पित रहा। आपने 'कर्मवीर' तथा 'प्रताप' पत्रों का संपादन कार्य भी किया। आपकी साहित्य-सेवा के फलस्वरूप आपको "देव पुरस्कार' साहित्य अकादमी पुरस्कार, भारत सरकार द्वारा 'पद्मश्री' तथा सागर वि.वि. से आपको 'डी.लिट्.' की मानद उपाधि प्राप्त हुई । आपका निधन सन् 1968 में हुआ।


रचनाएँ- चतुर्वेदी ने अपनी रचनाओं से हिन्दी के अनेक विधाओं को समृद्ध किया ।

  • 1. कविता संग्रह - हिम किरीटनी, हिम तरंगिणी, माता, युगचरण, समर्पण, वेणु लो गूँजै धरा
  • 2. गद्य काव्य - साहित्य देवता ।
  • 3. कहानी संग्रह - कला का अनुवाद, बनवासी ।
  • 4. नाटक - कृष्णार्जुन युद्ध ।
  • 5. अनुवाद - शिशुपाल वध ।
  • 6. भाषण संग्रह - चिंतक की लाचारी, आत्मदीक्षा ।
  • 7. संपादित पत्र - प्रभा, प्रताप, कर्मवीर ।

आवपक्ष ( अनुभूति पक्ष )- उनकी कृतियाँ राष्ट्रीय भावनाओं से ओत-प्रोत हैं। उन्होंने ग्रामों में बसे भारत के दर्शन किए। सामाजिक विसंगतियों को देखकर उनकी भावनाएँ अधोलिखित रूप में व्यक्त हुईं-

शूली का पथ ही सीखा है, सुविधा सदा बचाता आया ।

मैं बलिपथ का अंगारा हूँ जीवन-ज्वाल जगाता आया ।



कलापक्ष (अभिव्यक्ति पक्ष)- आपने मुक्तक शैली का प्रयोग किया है। आपकी शैली का मुख्य गुण ओजस्विता है जिसमें आपकी भावात्मकता ने चार चाँद लगा दिए हैं। आपकी सभी रचनाएँ खड़ी बोली हिन्दी में हैं। आपकी भाषा में संस्कृत और उर्दू का भी समावेश हुआ है। आपकी रचनाओं में उपमा, अनुप्रास आदि अलंकारों के साथ प्रतीकों का भी प्रयोग हुआ है ।

साहित्य में स्थान- राष्ट्रीय भावनाओं की अभिव्यक्ति करने वाले कवियों की अग्रिम पंक्ति में चतुर्वेदी जी की गणना की जाती है। आपकी ओजस्वी कविता मुर्दों में भी प्राण फूँकने में सक्षम है, कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं है। आपकी कविता हमेशा भारतवासियों को प्रेरित करती रहेगी।

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