Type Here to Get Search Results !

छत्तीसगढ़ का प्रागैतिहासिक काल


भ्यता के आरम्भिक काल में मानव की आवश्यकताएँ न्यूनतम थीं, जो उसे प्रकृति से प्राप्त हो जाती थीं. मनुष्य पशुओं की भाँति जंगलों, पर्वतों और नदी के तटों पर अपना जीवन व्यतीत करता था. नदियों की घाटियाँ प्राकृतिक रूप से मानव का सर्वोत्तम आश्रय स्थल थीं. इस काल में मानव कंद-मूल खोदने और पशुओं के शिकार के लिये पत्थरों को नुकीले बनाकर औजार के रूप में प्रयोग करने लगा. पाषाण के प्रयोग के कारण यह युग पाषाण युग के नाम से ज्ञात है. विकास की अवस्था के आधार पर इस युग को चार भागों में विभाजित किया गया है-

पूर्व पाषाण युग

मध्य पाषाण युग

उत्तर पाषाण युग तथा नवपाषाण युग.


 पूर्व पाषाण युग के औजार महानदी घाटी तथा रायगढ़ जिले के सिंघनपुर से प्राप्त हुए हैं. मध्य युग के लम्बे फलक, अर्द्ध चन्द्राकार लघु पाषाण के औजार रायगढ़ जिले के 'कबरा पहाड़' से, चित्रित शैलाश्रय के निकट से प्राप्त हुए हैं. उत्तर पाषाण युग के लघुकृत पाषाण औजार महानदी घाटी, बिलासपुर जिले के धनपुर तथा रायगढ़ जिले के सिंघनपुर के चित्रित शैलगृहों के निकट से प्राप्त हुए हैं. छत्तीसगढ़ से लगे हुए ओडिशा के कालाहांडी, बलांगीर एवं सम्बलपुर जिले की तेल नदी एवं उसकी सहायक नदियों के तटवर्ती क्षेत्र के लगभग 26 स्थानों से इस काल के औजार प्राप्त हुए हैं.


इसके पश्चात् नव पाषाण युग आता है. इस काल में मानव सभ्यता की दृष्टि से विकास कर चुका था तथा उसने कृषि कर्म, पशुपालन, गृह निर्माण तथा बर्तनों का निर्माण, कपास अथवा ऊन कातना आदि कार्य सीख लिया था. इस युग के औजार दुर्ग जिले के अर्जुनी, राजनांदगाँव जिले के चितवा डोंगरी तथा रायगढ़ जिले के टेरम नामक स्थानों से प्राप्त हुए हैं. धमतरी-बालोद मार्ग पर लोहे के उपकरण आदि प्राप्त हुए हैं. ये गुफाओं में चित्रकारी करने की कला जानते थे.


 पाषाण युग के पश्चात् 'ताम्र' और 'लौह युग' आता है. दक्षिण कोसल क्षेत्र में इस काल की सामग्री का अभाव है, किन्तु निकटवर्ती बालाघाट जिले के ‘गुंगेरिया' नामक स्थान से ताँबे के औजार का एक बड़ा संग्रह प्राप्त हुआ है. लौह युग' में शव को गाड़ने के लिये बड़े-बड़े शिलाखण्डों का प्रयोग किया जाता था. इसे 'महापाषाण स्मारकों' के नाम से सम्बोधित किया जाता है. इन समाधियों को ‘महापाषाण पट्टतुम्भ' (डॉलमेन) भी कहा जाता है. दुर्ग जिले के करहीभदर, चिरचारी और सोरर में पाषाण घेरों के अवशेष मिले है . इसी जिले के करकाभाटा से पाषाण घेरे के साथ लोहे के औजार और मृद भाण्ड प्राप्त हुए हैं. धनोरा नामक ग्राम से लगभग 500 महापाषाण स्मारक प्राप्त हुए है, जिसका व्यापक सर्वेक्षण प्रोफेसर जे. आर. कांबले एवं डॉ. रमेन्द्रनाथ मिश्र ने सर्वप्रथम किया है. निकटवर्ती कालाहाण्डी जिले की नवापारा तहसील में स्थित सोनाभीर नामक ग्राम में पाषाण का घेरा मिला है.


प्रागैतिहासिक काल में मनुष्य पर्वत कन्दराओं में निवास करता था, तब उसने इन शैलाश्रयों में अनेक चित्र बनाए थे, जो इसके अलंकरणप्रिय एवं कलाप्रिय होने का प्रमाण हैं. रायगढ़ जिले के सिंघनपुर तथा कबरा पहाड़ी में अंकित शैल चित्र इसके उदाहरण है,कबरा पहाड़ में लाल रंग से छिपकली, घड़ियाल, सांभर अन्य पशुओं तथा पंक्तिबद्ध मानव समूह का चित्रण किया गया है. सिंघनपुर में मानव आकृतियाँ, सीधी, दण्ड के आकार की तथा सीढ़ी आकार में अंकित की गई हैं. अभी हाल के वर्षों में राजनांदगाँव जिले में चितवा डोंगरी, रायगढ़ जिले में बसनाझर, ओंगना, करमागढ़ तथा लेखाभाडा में शैलचित्रों की एक श्रृंखला प्राप्त हुई है. चितवा डोंगरी के शैलचित्रों को सर्वप्रथम श्री भगवान सिंह बघेल एवं डॉ. रमेन्द्रनाथ मिश्र ने उजागर किया.

छत्तीसगढ़ के बारे में पढ़ने के लिए नीचे दिये लिंक पर क्लिक करे 👇🏻

छत्तीसगढ़ का इतिहास

छत्तीसगढ़ी जनऊला(पहेलियाँ)


शॉर्ट नोट्स के लिए नीचे पढे -👇🏻



छ.ग. का इतिहास, भारत के इतिहास से प्रभावित रहा है। जो मानव सभ्यता के प्रारंभिक विकास से लेकर आधुनिक काल तक के लम्बे इतिहास का साक्षी रहा है।

लिपी के विकास के आधार पर प्रदेश के इतिहास को तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है।

1. प्रागैतिहासिक काल 2. आद्यऐतिहासिक काल 3. ऐतिहासिक काल

प्रागैतिहासिक काल

प्रागैतिहासिक काल के विभाजन के आधार पर कई स्थलों से प्राप्त किया गया। -

1. पूर्वपाषाण काल - सिंघनपुर (रायगढ़) महानदी घाटी [सीजी पीएससी (मेन्स) -2008]

2. मध्यपाषाण काल - कबरा पहाड़ (रायगढ़)

3. उत्तर पाषाणकाल - सिंघनपुर (रायगढ़), धनपुर (बिलासपुर), महानदी घाटी

4. नवपाषाण काल - अर्जुन (दुर्ग),टेरम (रायगढ़), चितवाडोंगरी(राजनांद गांव), बोनटिल (राजनांद गांव)

                   स्थान                प्राप्त अवशेष

1.     सिंघनपुर (रायगढ़) . -  सीढ़ीनुमा मावनकृति, शिकार करता हुआ मनुष्य

2.     कबरा पहाड़ (रायगढ़)  - पंक्तिबद्ध मानव समूह, लाल छिपकली, घड़ियाल, सांभर

 विशेष तथ्य:-

1. रायगढ़ जिले के करमागढ़, बसनसझर, ओंगना, लेखाभाड़ा, बेनीपाट, बोतल्दा आदि से शैलचित्र प्राप्त हुए है।

2. प्राचीन गुफा - सिंघनपुर फिर कबरा पहाड़

3. बलौद जिले के चिरचारी, सोरर, करहीभदर से पाषाणघेरों के अवशेष मिले है|

4. कोंडागाँव जिले के गढ़धनोरा गढ़चंदेला,राजपुर आदि से पाषाण काल के औज़ार मिले है |

5. सर्वाधिक जानकारी - कबरा पहाड

6. सबसे लम्बी गुफा - बोतल्दा की गुफा

7. इस काल के सर्वाधिक शैलचित्र रायगढ़ जिले से मिले है।

8. छ.ग. के शैलचित्रों की खोज सर्वप्रथम 1910 में अंग्रेज इतिहासकार एंडरसन ने  किया था।

9. नवपाषाणिक अवशेषों की सर्वप्रथम जानकारी डॉ. रमेन्द्रनाथ मिश्र व डॉ भगवान सिंह ने किया।

 

छत्तीसगढ़ map द्वारा प्रागैतिहासिक काल को और भी अच्छे से समझे।


1. पूर्वपाषाण काल सिंघनपुर (रायगढ़) महानदी घाटी 





2. मध्यपाषाण काल कबरा पहाड़ (रायगढ़)





3. उत्तर पाषाणकाल सिंघनपुर (रायगढ़)धनपुर (बिलासपुर)महानदी घाटी





4. नवपाषाण काल अर्जुन (दुर्ग),टेरम (रायगढ़)चितवाडोंगरी(राजनांद गांव)बोनटिल (राजनांद गांव)




उम्मीद करते है आपको ये जानकारी अच्छी लगी होगी और ये जानकारी आपके आने वाले प्रतियोगिता परीक्षा के लिए उपयुक्त साबित होगी हमारे वैबसाइट CGPSC EXAM TIPS में आने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद और भी जानकारी के लिए हमारे वैबसाइट पर जरूर visit करे व cgpsc से संबन्धित कोई भी सुझाओ देना चाहते है तो हमे contect करे ? 

छत्तीसगढ़ के बारे में और अधिक पढ़ने के लिए नीचे दिये लिंक पर क्लिक करे 👇🏻

छत्तीसगढ़ का इतिहास

छत्तीसगढ़ी जनऊला(पहेलियाँ)

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.